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इश्क़ से अनुभव

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दिल पर कुछ यूँ अख्तियार कर रहा है इश्क़ से अनुभव  दरकिनार कर रहा है ख्वाहिश एक, मुश्किलें हजार हैं मगर इरादों के  हथियार में धार  कर रहा है खफ़ा है मगर कोई  बोलता कुछ  नहीं हर कोई पीठ पर मेरी वार कर रहा है फिरते  हैं  सभी बने  मियां मिट्ठू  यहां फिर भी सभी का ऐतबार कर रहा है ना कुछ भी बचा है अब इसका निजी ये इंसान खुद को अखबार कर रहा है अनुभव मिश्रा ✍️❤️

आशियाने में जा रहा हूँ...❣️

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चरागों से दूर किसी वीराने में जा रहा हूँ थका हुआ हूँ मैं आशियाने में जा रहा हूँ बिछड़ गया है मुझसे कहाँ गया ना जाने सुकूं से मिलने बीते ज़माने में जा रहा हूँ अनुभव मिश्रा ✍️

क़ल्ब मेरा...❣️

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"कितने जान लुटाते  फिरते हैं जिस पर क़ल्ब मेरा अब उसका उम्मीदवार नहीं" अनुभव मिश्रा ✍️

अनुभव पहले जैसा बुर्दबार नहीं

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पहले जैसा  बेकस, बेक़रार  नहीं मुझको उसका अब इन्तेज़ार नहीं वो तो दिखा गए सब रंग अपने मैं भी पहले जैसा बफ़ादार नहीं याद जो आती तो खुश हो जाता था पहले जैसा  मुझमें रहा   ख़ुमार नहीं छोड़ गए हैं  साथ मेरा जिस  दिन से दिल का मिलता कोई खरीददार नहीं कितने जान   लुटाते फिरते हैं  उन पर क़ल्ब मेरा अब उसका उम्मीदवार नहीं इससे बुरी क्या हालत होगी अब मेरी जल्दी सोना  लगता अब  दुश्वार नहीं सजा के रखे यादें मेरी भी दिल में बचा कोई भी  ऐसा पहरेदार नहीं मौत  तलाशे  ढूंढे  चारो ओर  मुझे रहूँ सलामत ऐसी चाहरदीवार नहीं शर्म बची ही नहीं  है अब मेरे अंदर "अनुभव" पहले जैसा बुर्दबार नहीं अनुभव मिश्रा ✍️❣️

पृथ्वी का मान बढ़ाते हैं

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है पृथ्वी जीवन पृथ्वी माता ये ही हमारी भाग्य विधाता जन-जीवन शून्य बिन इसके है ये ही हमारी जीवन दाता ये है उद्‌गम ये ही अंत है सारी ऋतुएं सह बसंत है पृथ्वी है अनाज की दाता पृथ्वी से ही हम जीवंत हैं ये ही वृक्ष है, ये ही हवा है इसके बिन बे-असर दवा है पृथ्वी के बिन कोई नहीं है पृथ्वी है तो ही जिन्दगी है हैं इसी से खुशियां इसी से आँसू इसकी बदौलत सूर्य और सुधासू ये प्रकृति इन कोरोना के पलों में भी जीने की आस दे रही है इसकी सुरक्षा हमारा कर्तव्य है क्युकी पृथ्वी भी साँस ले रही है पृथ्वी ने ही तो सारे संसार को रचाया है गोद लेकर सबको माँ का दर्जा पाया है पर्यावरण संरक्षण करके पृथ्वी का मान बढ़ाते हैं पृथ्वी दिवस के अवसर पर आओ वृक्ष लगाते हैं अनुभव मिश्रा ✍️

ये जिंदगी है कुछ यूँ

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ये जिंदगी है कुछ यूँ कुछ इस तरह इसमे चलना पड़ता है, जब जब गिराए कोई उठकर तब तब सम्भलना पड़ता है, बिखेरने को खड़ा है ज़माना तोड़ने को हैं सभी, टूटकर फिर से जो चमके उस हीरे सा निखरना पड़ता है, ये जिंदगी है कुछ यूँ कुछ इस तरह इसमे चलना पड़ता है...!! लहरों से ना तू डर अब ग़र समंदर में है तू उतर गया, लहरों को चीर कर ही तो नौका को आगे निकलना पड़ता है, मुश्किलों से ना तू डर ना हार मान उनसे कभी, मुश्किलें हैं सीढियों सी पाने को मंजिल कई सीढ़ियां चढ़ना पड़ता है, ये जिंदगी है कुछ यूँ कुछ इस तरह इसमे चलना पड़ता है...!! आशिकी में ना तू पड ना इश्क़ को मंजिल बना, है दूर तक जाना तुझे बस हौले हौले चलता जा, कुछ पाने के लिए थोड़ा परिश्रम तो करना पड़ता है, सफ़र-ए-हयात बनाने को हसीन हालातों से भी लड़ना पड़ता है, ये जिंदगी है कुछ यूँ कुछ इस तरह इसमे चलना पड़ता है...!! मंजिल तेरी तू खुद बना ज़माने से क्या है पूछता, हमसफर तू खुद का बन राहों में अकेले चलना पड़ता है, यूँ ही नहीं   पहुँच जाता कोई ऊंचे ऊंचे मुक़ामों पर, सपनों की जमीं पर चलने के लिए कई मर्तबा फिसलना पड़ता है, ये

एक कप चाय❤️

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मैं आसमाँ का भटकता परिंदा, मुझको घर तक मेरे पहुंचा दो, एक तेरा सहारा है *अनुभव*, मुझको मंजिल से मेरी मिला दो. टूटा हूँ कुछ मैं अंदर से ऐसे, हौसला मेरा फिर तुम बढ़ा दो, अपनी मंजिल भटकने लगा हूँ, थाम उंगली मुझे तुम चला दो. ग़म का मारा थका हारा हूँ मैं, दिल को मेरे सुकूं तुम दिला दो, आशिकी मुझको आती नहीं है, तुम गले से लगाकर सिखा दो. पास आने में शर्म-ओ-हया है, ख्वाबों में ही मुझे तुम बुला लो, बाहों में आना मुमकिन नहीं ग़र, एक कप चाय ही तुम पिला दो.      ©अनुभव_मिश्रा❣️✍️